सैयद रिज़वान मुस्तफा
20 नवंबर को हर साल विश्व बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें बेहतर भविष्य देने की दिशा में काम करना है। लेकिन जब हम इस दिन को मनाते हैं, तो दिल में एक टीस उठती है—उन मासूम बच्चों के लिए जो जुल्म, भूख, प्यास और हिंसा का शिकार हो रहे हैं। हम उन बच्चों की मासूमियत और बेबसी को याद करते हुए रो देते है, जो इस दुनिया के सबसे बड़े जुल्म का सामना कर रहे हैं।
करबला का सबसे छोटे शहीद: हज़रत अली असगर (अलैहिस्सलाम)
1400 साल पहले करबला की तपती रेत पर, एक छह महीने का बच्चा, हज़रत अली असगर (अलैहिस्सलाम), इंसानी क्रूरता का शिकार हुआ। पैग़म्बर मोहम्मद मुस्तफा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के प्यारे नवासे, हज़रत इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) के सबसे छोटे बेटे को यज़ीदी फौज ने तीन दिनों की प्यास के बाद तीर से गले पर वार कर शहीद कर दिया।
सोचिए, एक मासूम बच्चा जो बोल भी नहीं सकता, जो केवल दूध पीने और मां की गोद में रहने के लायक था, उसे बिना किसी अपराध के शहीद कर दिया गया। उसकी प्यास बुझाने के बजाय, उसकी नन्ही गर्दन पर बर्बरता का तीर चलाया गया। हज़रत अली असगर का ये बलिदान हमें बताता है कि जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने का मतलब क्या होता है, और यही वजह है कि आज भी लाखों लोग उनकी शहादत को सलाम करते हैं।
आज की करबला : फिलिस्तीन, यमन, सीरिया और लेबनान के बच्चे
आज, 21वीं सदी में, जब दुनिया तकनीकी और विकास के शिखर पर है, मासूम बच्चों की हालत बदतर होती जा रही है। फिलिस्तीन, यमन, सीरिया, और लेबनान जैसे देशों में हजारों मासूम बच्चे जुल्म का शिकार हो रहे हैं। बमबारी, भुखमरी, प्यास, और हिंसा ने इन बच्चों से उनका बचपन छीन लिया है।
फिलिस्तीन में, बेगुनाह बच्चे अपने घरों के मलबे में दबकर मर रहे हैं। यमन में भूख और प्यास से बिलखते बच्चे आखिरी सांस ले रहे हैं। सीरिया और लेबनान में जुल्म के खिलाफ लड़ाई में नन्हीं जानें कुर्बान हो रही हैं। इन मासूमों की आँखों में डर और भूख की तस्वीर देखकर दिल रो पड़ता है।
इंसानियत पर सवाल: हम क्यों चुप हैं?
क्या ये वही दुनिया है जो बच्चों को भगवान का रूप मानती है? क्या ये वही इंसानियत है जो हर धर्म में बच्चों को सबसे पवित्र मानती है? हमारी लाचारी ये है कि हम उन भूखे-प्यासे बच्चों तक एक गिलास पानी भी नहीं पहुंचा सकते। हमारी चुप्पी उनके दर्द को और बढ़ा देती है। जब तक हम कुछ कर पाने के काबिल होते हैं, तब तक ये बच्चे भूख, प्यास और हिंसा का शिकार हो चुके होते हैं।
इजराइल और अमेरिका जैसे ताकतवर देशों की नीतियां, ईरान इराक में कतले आम करने के बाद फिलिस्तीन लेबनान,सीरिया और यमन के बच्चों के लिए मौत का पैगाम लेकर आती हैं। इन नीतियों के खिलाफ नारे लगाना और लानत भेजना ही आज हमारा विरोध बन चुका है। लेकिन क्या ये काफी है?
दुआ का सहारा और उम्मीद का दिया
आज विश्व बाल दिवस के मौके पर, आइए हम सब उन मासूम बच्चों के लिए दुआ करें जो जुल्म का शिकार हुए हैं। दुआ करें कि उन्हें राहत मिले, उनके घाव भरें, और उन्हें इंसानियत का वो चेहरा देखने को मिले, जो प्यार, दया और करुणा से भरा हो।
हमें उन माता-पिता की वेदना को भी समझने की जरूरत है, जिनकी आंखों के सामने उनके बच्चों की मासूमियत छीन ली गई। हर रात वे बच्चे जो भूख से बिलखते हैं, और हर सुबह जो बच्चे डर के साए में जागते हैं, उनके लिए हमें खड़े होना होगा।
मासूमियत के रखवाले बनें
आज जरूरत है कि हम सिर्फ नारों तक सीमित न रहें। हमें इन मासूमों के लिए कुछ करना होगा। चाहे वह उनका दर्द दुनिया तक पहुंचाना हो, उनके लिए राहत का सामान भेजना हो, या फिर ऐसी नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाना हो जो इन बच्चों का बचपन छीन रही हैं।
आइए, इस विश्व बाल दिवस पर हम अपने आंसुओं को उनकी मदद के लिए प्रेरणा बनाएं। आइए, हम उन मासूमों का साथ दें, जिनकी मासूमियत को दुनिया ने कुचल दिया है। आज अगर हम चुप रहे, तो आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी।